ताज़िया दारी के मुकम्मल मसाइल हिंदी में/ تعزیہ داری کے مکمل مسائل / Taziya Dari Ke Mukammal Masaile In Hindi

 ताज़िया दारी के मुकम्मल मसाइल हिंदी में/ تعزیہ داری کے مکمل مسائل / Taziya Dari Ke Mukammal Masaile In Hindi




सवाल

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
क्या फरमाते हैं उलमाए इकराम व मुफ्तियाने इज़ाम इस मस्अला के बारे में, 

कि अय्यामे मोहर्रमुल हराम में -

कुछ लोग कहते हैं ढोल बजाना जाइज़ है --

और कुछ लोग कहते हैं नाजाइज़ है --

जवाब की बहोत अहेम ज़रूरत है - और सरकारे आला हज़रत अलैहिर्रहमा के किसी भी किताब का ह़िवाला रहेगा तो बहोत ही बेहतर होगा

                 फक़त व सलाम

जवाब

वालैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू 

अहले सुन्नत वल्जमाअत के नज़दीक : ताज़िया बनाना , ताज़िया का तमाशा दिखाना,  उसपे चड़ावा चडा़ने की हैसियत, ( इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा बरेल़ी रहमतुल्लाह अलैहि की कुतुब की रौशनी में )
मोहर्रमुल हराम में किए जाने वाले ग़लत काम

********************************

1) - ताज़िया बनाना कैसा ? 

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि ताज़िया बनाना बिदअतो नाजाइज़ है   (फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 24, सफा 501, मतबूआ रजा फाउन्डेशन लाहोर) 

2) - ताज़िया दारी में तमाशा देखना कैसा है ?

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि चूंकि ताज़िया बनाना नाजाइज़ है लिहाज़ा नाजाइज बात का तमाशा देखना भी नाजाइज़ है 
           (मल्फूज़ात शरीफ, सफा 286)


3) - ताज़िया पर मन्नत मानना कैसा ?

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि ताज़िया पर मन्नत मानना बातिल और नाजाइज़ है
         (फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 24, सफा 501, मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहोर)

3) - ताज़िया पर चडा़वा चडा़ना और उसका खाना कैसा ? 

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि ताज़िया पर चडा़वा चडा़ना नाजाइज़ है और फिर उस चडा़वे को खाना भी नाजाइज़ है - 
(फतावा रज़विया, जिल्द 21, सफा 246, मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहोर)

4) - मोहर्रमुल हराम में जाइज रुसूमात ?

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि मोहर्रम के इबतदाई 10 दिनों में रोटी न पकाना, घर में झाडू़ न देना, पुराने कपडे़ न उतारना (यानी साफ सुथरे कपडे़ न पहनना) सिवाए इमाम हसन व हुसैन रदिअल्ला अनहुमा के किसी और की फातिहा न देना, और मेंहदी निकालना ये सब बातें जिहालत पर मबनी हैं
  (फतावा रज़विया जदीद , सफाह 488, जिल्द 24, मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहोर )

5) - मोहर्रमुल हराम में तीन रंग के लिबास ना पहने जाएं

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि मोहर्रमुल हराम में (खुसूसन यकुम ता दस मोहर्रमुल हराम) तीन रंग के लिबास ना पहने जाएं, सब्ज़ रंग का लिबास ना पहना जाए, कि ये ताज़िया दारों का तरीका है, लाल रंग का लिबास ना पहनाजाए कि ये अहले बैत से अदावत रखने वालों का तरीका़ है, और काले कपडे़ ना पहने जाएं कि ये राफज़ियों का तरीका़ है लिहाज़ा मुसलमानों को इस से बचना चाहिए 
              (अहकामे शरीअत) 

6) - आशूरह का मेला

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि आशूरह का मेला लगू व लहू व ममनूअ है- यूँही ताज़ियों का दफन जिस तोर पर होता है- नियत बातिला पर मबनी और ताज़ीमे बिदअत है और ताज़िया पर जहेल व हमक व बे माना है- (फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 24, सफा 501, मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहोर)

6) - दुश्मनाने सहाबा की मजालिस में जाना

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि राफज़ियों (दुश्मनाने सहाबा) की मजलिसों में मुसलमानों को जाना और मुरसिया (नोहा) सुनना हराम है - उनकी नियाज़ की चीज़ न ली जाए, उनकी नियाज़, नियाज नहीं और वोह गा़लिबन नजासत से खाली नहीं होती - कम अज़ कम उनके नापाक क़ल्तीन का पानी ज़रूर होता है और वोह हखज़िरी सख्त मलऊन है और उसमें शिरकत मूजिबे लानत - मोहर्रमुल हराम में सब्ज़ और सियाह कपडे़ अलामते सोग है और सोग हराम है खुसूसन सियाह (लिबास) का शिआर राफज़ियाँ लयाम है - 
(फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 23, सफा 756, मतबुआ रजा़ फाउन्डेशन लाहोर)

7) कडे़, छल्ले एक से जा़यद अंगूठियाँ पहेनना

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि चांदी की एक अंगूठी एक नंग की साढ़े चार माशा से कम वज़न की मर्द को पहनना जाइज़ है और दो अंगूठियाँ या कयी नंग की एक अंगूठी या साढ़े चार माशा खुवाह ज़ाइद चांदी की (पहनना जाइज़ है) 
और सोने, कांसी, लोहे, पीतल, और ताम्बे (की अंगूठी, छल्ले, कडे़) मुतलकन नाजाइज़ है
(अहकामे शरीअत, हिस्सा दोम, सफा 80)

8) - यजी़द को " रहमतुल्ला अलैहि " कहेना नासबी होने की अलामत है ?

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरैली अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि यज़ीद बेशक पलीद था - उसे पलीद कहना और लिखना जाइज़ है और उसे "रहमतुल्लाह अलैहि" ना कहेगा मगर नसबी कि अहले बैत का दुशमन है 
(फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 14, सफा 603, मतबूआ रज़ा फाउन्डेशन लाहोर)

मुसलमानों को चाहिए कि मोहर्रमुल हराम में खुराफात से बचें

9 और 10 मोहर्रमुल हराम का रोज़ह रखें शोहदाए करबला की याद में सबीलें लगाएं - शरबत पिलाऐं नज़रो नियाज़ का एहतमाम करें
चुनान्चे शाह वलीय अल्लाह मुहद्दिसे दहलवी अलैहिर्रहमा के साहब जादे हज़रत शाह अबदुल अजी़ज़ मोहद्दिसे दहेलवी अलैहिर्रहमा अपनी मारकतुल आरा किताब "तोहफ ए असनाए अशरी" में फरमाते है कि मौला अली रदिअल्लाह अनहू और औलादे अली में विलायत रूहानी तौर पर मौजूद है- इस लिए में हर साल 10 मोहर्रमुल हराम को हज़रते इमामे हुसैन रदिअल्लाह अनहू और शोहदाए करबला की नियाज़ दिलाता हूँ और खडे़ हो कर उनपर सलाम पेश करता हूँ 
(सबीलों और दुकानों पर नोहा और मरसिया की कैसिटें हरगि़ज़ ना बजाएं) 

आशूरह के दिन अच्छे काम

आशूरह के दिन अच्छी तरह गु़सल करें, अच्छे कपडे़ पहने, खु़श्बू लगाएं, तेल लगाएं, सुरमा लगाएं, नाखू़न तरशवाएं, रोज़ह रखें, बीमार की अयादत करें, सदका़ व खै़रात करें, और मरहूमीन को ईसाले सवाब करें-

शबे आशूरह की नफिल नमाज़

आशूरह की रात में चार रकात नमाज़ नफिल इस तरकीब से पढे़ं कि हर रकात में सूरए फातिहा के बाद आयतल कुर्सी एक बार और सूर ए इख़लास तीन बार पढे़ और नमाज़ से फारिग़ होकर एक सौ मरतबा सूर ए इख़लास पढ़ें, एसा करने वाला गुनाहों से पाक होगा और जंनत में बे इन्तिहा नेमतें मिलेंगी - 
             (जंनती ज़ेवर, सफा 157)

मोहर्रमुल हराम इस्लामी साल का पहला महीना है, इस्लाम दुनिया का वाहिद मज़हब है जिसका इस्लामी साल मोहर्रमुल हराम में हज़रते फारूके़ आज़म रदिअल्लह अनहू, हज़रते इमामे हुसैन रदिअल्लाह अनहू और उनके रुफका़ की बे मिसाल कुरबानी से शुरू होकर हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की ला ज़वाल कुरबानी पर इख्तताम पजी़र होता है-
मगर कितने अफसोस की बात है कि मोहर्रमुल हराम के शुरू होते ही ताज़िया दारों में एक खु़शी की लहेर दौड़ जाती है - दिलों में शादियाने बजने लगते हैं, माल जमा करने का सीज़न आजाता है, फौरन पुराने ताज़िये अज़ सर नौ बनने शुरू हो जाते हैं जबकी जिन्हों ने अपने पुराने ताज़िये डिबो दिए होते हैं, वोह दोबारह ताज़िए बनाने में मसरूफे अमल हो जाते हैं,

इस्टील, पीतल, और चांदी से तय्यार करदह मस्नुई हाथ, पावं, आंखों, और बाजू़  की तय्यारी शुरू हो जाती है- उनका कारो बार उरूज पर पहुंच जाता है- हरे कपडे़ और नीले पीले धागे फरोख्त करने वालों की चांदी हो जाती है बाज़ औरतें अपने बच्चों को इमामे हुसैन रदिअल्लह अनहू का फकी़र बनाती है जो कि उन बच्चों को मांग कर खिलाती हैं, बाज़ बद नसीब सुन्नी हज़रात अपने घरों, दुकानों, सबीलों, मोटर कारों, मोटर साइकीलों, में जो़र जो़र से मातम की कैसिट बजाते है और काले कपडे़ पहन कर फखर महसूस करते है, 
...... नौ मोहर्रमुल हराम का सूरज गुरूब होते ही , ड़को और गली कूंचो मे तूफान बत्तमीजी़ मचाया जाता है, शहेर के आवारह, और बत्तमीज़ और जाहिल नौजवान सरों पर हरी पट्टियाँ बांध कर मंज़रे आम पर आ जाते है, ताज़िये निकाले जाते हैं उसके साथ जो़र जो़र से ढोल पीटा जाता हैं ताशे बजाए जाते है, कपडे का दुर्रा बना कर नौजवान एक दूसरे को पीटते है, बे परदह औरतों का हुजूम भी सड़को पर निकल आता है, जिनके हाथ में बच्चे और नारियल होते हैं, वोह बे परदह औरते फखर के साथ ताज़िये पर नारियल का चढा़वा चढा़ती है, मर्द हज़रात भी अपने बच्चों को साथ लाते हैं, ताकी जाहिलों का तमाशा अपने बच्चों को दिखा कर उनका गुनाह भी अपने सर लें नज़रो नियाज़ जैसी बा बरकत चीज़ को बे दरदी से फेंका जाता है, रिज़क की  बे हुरमती होती है ताज़िये बनाकर इमाम हुसैन रदिअल्ला अनहू के नाम पर कमाई का धन्धा खुल जाता है, 

ताज़िया दारों को इन मुक़द्दस दिनों में न इबादत की फिकर होती है न नमाज़ों की फिकर होती है, बल्की दूसरों की इबादतों में भी ख़लल डालते हैं, और ये अपने ज़हने फासिद में समझते हैं कि हम नेकी का कम कर रहे हैं, हालांकि उनके अफ आल का इसलाम से दूर तक कोई ताल्लुक़ नहीं होता और नाही मसलके अहले सुन्नत से उसका कोयी ताल्लुक़ है, 
....... इन तमाम खुराफात के बारे में अपने इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रजा़ खाँन फाज़िले बरैलवी रहमतुल्ला अलैहि मशहूर ज़माना तसनीफ फतावा रज़विया से मदद लेते हुए उन खुराफात की हकी़क़त अवामे अहले सुन्नत के सामने वाज़ेह करते हैं

ताज़िये बनाना कैसा है ? 

ताज़िया दारी का आगा़ज़ के सिलसिले में यूँ सुना सुना गया है कि सुलतान तैमूर के दौरे हुकूमत में इसका आगा़ज़ हुआ, ताज़िया दारी बिदअत हराम और नाजाइज़ है, 
            (अज़ फतावा रज़विया)

ताज़िये पर चढ़ावा चढ़ाना कैसा है?

ताज़िया बनाना ( जो अवाम में राइज है) नाजाइज़ व बिदअत हैउसका बनाना गुनाह व मासियत और उसके ऊपर शीरीनी वगै़रह (खाने पीने के अशिया, गुड़ और नारियल वगैरह) चढ़ाना महेज़ जिहालत है और ताज़िये की ताजी़म बिदअत, जिहालत और नाजाइज़ है, 
(अज़ फतावा रज़विया, जिल्द दहेम, निस्फ आखिर सफा 63)

ताज़िये का चढ़ावा खाना कैसा है? 

....... ताज़िये का चढ़ावा नहीं खाना चाहिए, बाज़ लोग ये कहते है कि हम ताजि़ये का चढ़ावा इस नियत से नहीं खाते कि ये ताज़िये का चढ़ावा है, बल्की इस नियत से खाते हैं कि ये इमाम आली मुका़म इमामे हुसैन रदिअल्लाह अनहू के फातिहा की नियाज है तो ये कौ़ल भी गलत व बेहूदह है कियुँ की ताज़िये पर चढ़ावा चढ़ाने से इमामे हुसैन रदिअल्लाह अनहू की नियाज़ नही हो जाती -

क्या ताज़िया दारी कुफ्र है? 

ताज़िया जिस तरह राइज है न सिर्फ बिदअत बल्की बिदअत का मजमूआ है- ताज़िया न रौजा़ इमाम हुसैन रदिअल्ला अनहू  का नक़शा है और नक़शा भी हो तो ढोल ताशे और बाजों के साथ गश्त करते हुए निकलना क्या ये रौज़ ए इमाम हुसैन रदिअल्ला अनहू की शान है, (बल्की तौहीन है) क्या इमामे हुसैन रदिअल्लाह ताला अनहू की तौहीन (उनके यौमे शहादत की तौहीन) का़बिले ताजी़म हो सकती है, काबा मुअज़्मा में ज़मान ए जाहिलियत में मुश्रिकीन ने हज़रते इबराहीम व हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की तसवीरें बनाई और हाथ में और हाथ में पानसे दिए थे जिन पर अल्लाह तआला ने लानत फरमाई और उन तस्वीरों को महू फरमा दिया गया-
.... ताज़िया बनाना ज़रूर नाजाइज़ और बिदअत है मगर कुफ्र नहीं है ताज़िया दार गुनाहगार ओर फेले हराम के मुरतकिब ज़रूर है मगर उनको काफिर कहना वहाबिया का तरीका़ है ताज़िया दार को काफिर कहने वाला खुद काफिर हो जाएगा
        (अज़ फतावा रज़विया, जिल्द दहेम) 

ताज़िया दारी में इम्दाद? 

...... ताज़िया दारी में किसी कि़स्म की इमदाद जाइज़ नहीं (इमदाद करने वाला भी गुनाह गार होगा) कियुँ की ये राफज़ियों का तरीका़ है ताज़िया को जाइज़ समझ कर बनाना ये फासिकों का तरीका़ है
(अज़ फतावा रज़विया, जिल्द दहेम, सफा 471/472)

मोहर्रमुल हराम में जाइज़ काम ?

मोहर्रमुल हराम के 10 दिनों में बाज़ लोग पुराने कपडे़ नहीं उतारते (और नये कपड़े नही पहेन्ते) सिवाऐ इमाम हुसैन रदिअल्ला अनहू के किसी और की फातिहा नहीं दिलाते , 10 मोहर्रमुल हराम को घर में झाडू़ नहीं लगाते और न ही दिन भर रोटी पकाते है और कहते हैं ताज़िया दफन करने के बाद रोटी पकाई जाएगी, गोश्त वगै़रह भी नहीं पकाते ये तमाम बातें जिहालत पर मबनी हैं, इस से मुसलमानों को बचना चाहिए, 
(अज़ फतावा रज़विया, जिल्द 10, सफा 536,)

मोहर्रमुल हराम में ममनूआ काम? 

......ताज़िया बनाना, उस से मुरादें मांगना अलम (झन्डा) चढा़ना, मेंहदी चढा़ना (जो सात मोहर्रमुल हराम को हज़रते इमाम का़सिम रदिअल्लाह अनहू  की याद में लगायी और चढ़ायी जाती है) बच्चों को सब्ज़ कपडे़ पहनाना और उनके गलों में डोरियाँ (बाज़ू पर डोरियाँ बांधना) बांध कर इमामे हुसैन रदिअल्लाह ताला अनहू का फकी़र बनाना (घर का खाना न खाये सिर्फ दूसरों से मांग कर फकी़र की तरह खाये) दस रोज़ तक सोगवार रहना (सोग इस्लाम में सिर्फ तीन दिन है जो वाक़िया करबला के बाद मुसलमानों ने मना लिया, अब कोयी सोग नहीं, इमामें हुसैन रदिअल्ला ताला अनहू की शहादत का ग़म एक अलग चीज़ है जो शरीअत के दाइरे में रहकर दिल में रखा जा सकता है, और कौन सा ऐसा मुसलमान है जो इमामे हुसैन रदिअल्लाह ताला अनहू की शहादत पर ग़मगीन नही होगा)
...... शोहदाए करबला के सोयम, और चहेल्लुम विसाल के बाद सिर्फ एक मरतबा होता है अब सिर्फ यौमे शहादत मनाया जाता है, और अवाम अकसर ये कहते है कि आज इमामे हुसैन रदिअल्लाह ताला अनहू का सोयम है फिर चहेल्लुम है ऐसा कहना भी दुरुस्त नही, मातमी मरसियों का पढ़ना ये तमाम रसमें ममनूआ और नाजाइज़ हैं, ...... यजी़द की आड़ में हज़रते सय्यदना कातिबे वही अमीरे माविया रदिअल्लाह ताला अनहू दारे द़ाह या किसी भी सहाबिये रसूल को बुरा कहना मना है
      (अज़ फतावा रज़विया, जिल्द 10, सफा 537)

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँन साहब अलैहिर्रहमा मारिकतुल आरा किताब अहकामे शरीअत में फरमाते है, 

मोहर्रमुल हराम में (खुसूसन यकुम ता दस मोहर्रमुल हराम) में तीन रंग के लिबास ना पहने जाएं, हरा लिबास ना पहना जाए कि ये ताज़िया दारों का तरीका है, लाल रंग का लिबास ना पहनाजाए कि ये अहले बैत से अदावत रखने वालों का तरीका़ है, और काले कपडे़ पहनना कि ये राफज़ियों का तरीका़ है, मुसलमानों को इस से बचना चाहिए, 
       (अज़ किताब : अहकामे शरीअत) 

ईसाले सवाब का अहसन तरीका़? 

हज़रते इमामे हुसैन व दीगर शोहदाए करबला रिदवानुल्लाही ताला अलैहिम अजम ईन की याद में सबील क़ायम करके लोगों को पानी पिला कर ईसाले सवाब किया जाए, लोगों को खाना खिलाया जाए, नज़रो नियाज़ का एहतमाम किया जाए, और ये बुज़ुरगाने दीन का तरीका़ भी है, चुनान्चे हज़रते शाह वलीय अल्लाह मोहद्दिसे दहेलवी अलैहिर्रहमा के साहब जादे हज़रत शाह अबदुल अजी़ज़ मोहद्दिसे दहेलवी अलैहिर्रहमा अपनी मारकतुल आरा किताब तोहफ ए असना अशरी में फरमाते हैं (ये वोह शाह अबदुल अजी़ज़ मोहद्दिसे दहेलवी है जिनका नाम अगर किसी आलिमे दीन की सनद (शर्टीफिकेट) में ना हो तो वोह आलिमे दीन नही कहलाता) कि हज़रते अली रदिअल्लाहु ताला अनहू और औलादे अली में विलायत रूहानी तौर पर मौजूद है, इस लिए में हर साल दस मोहर्रमुल हराम को हज़रते इमामे हुसैन रदिअल्लाह ताला अनहू और दीगर शोहदाए करबला की नियाज़ दिलाता हूँ और खडे़ हो कर उनपर सलाम पेश करता हूँ 


मो० उसमान आशिकी़ 


RASULPANH GOLA LAKHIMPUR KHERI UP INDIA
JUMERAAT / 4 / AUGUST / 2022
Previous
Next Post »
Comments

Comment inbox
EmoticonEmoticon