अजान और अका़मत में कमीं ज़ियादती हो जाए तो अजा़न और अका़मत होगी या नहीं
सवाल
अस्सलामुअलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहू
क्या फरमाते हैं उलमाए इकराम व मुफ्तियाने इजा़म इस मस्अला के बारे में कि मोअज्ज़िन साहब ने फजर की अजा़न में अस्सलातु खैरूम मिनन्नौम, कहना भूल गये, और जो़हर की आजा़न में अश्हदुअल्लाइलाहा इल्लल्लाह, एक ही बार कहा तो क्या अजा़न दोबारह पढ़नी होगी और बा जमाअत नमाज़ पढ़ने के लिए अजा़न न कही जाए तो नमाज़ दुरुस्त होगी, और जे़द कहता है कि अस्सलातु खैरुम मिनन्नोम, पढ़ना भूल जाए तो दोबारह पढ़ने की ज़रूरत नहीं अगर नहीं तो कियूँ वजह दरियाफ्त तलब है जब से अजा़न पढी़ जाने लगी है तभी से अस्सलातु खैरुम मिनन्नौम, पढ़ा जा रहा है या बाद में पढ़ा जाने लगा कु़रआन, व हदीस की रोशनी में मुदल्लल व मुफस्सल जवाब इनायत फरमाएं महेरबानी होगी।
जवाब
अगर अजा़न में अश्हदु अल्लाइलाहा इल्लल्लाह या अस्सलातु खैरुम मिनन्नौम छूट जाए तो उसे दोबारह पढ़लें सिरे से अजा़न लौटाने की ज़रुरत नहीं अगर न लौटाए और नमाज़ पढ़ली तो नमाज़ हो गयी
अस्सलातु खैरुम मिनन्नोम, जब से अजा़न शुरू हुयी है उस वक्त से राइज है - اذا قدام في اذانه أو في إقامته بعض الكلمات على بعض نحو أن يقول أشهد أن محمدا رسول الله قبل قوله اشہد ان لا اله الا اللہ' فالافضل في هذا أن ما سبق على أوانه لا يعتد به حتى يعيده وموضعه و إن مضي علي ذلك جازت صلاته كذا في المحيط"
ج 1 کتاب الصلاۃ، الباب الثاني في الأذان،الفصل الثاني، صفحہ 56
बहारे शरीअत जिल्द अव्वल में है : अगर कलेमाते अजा़न या इका़मत में किसी जगह तक़दीम व ताखीर हो गयी - तो उतने को सही करले, सिरे से इआदह की हाजत नहीं और अगर सहीह न किये नमाज़ पढ़लिया तो नमाज़ के इआदह की हाजत नहीं- (हिस्सा सोम सफा 473 )