Manqab Lyirics / Tarhap Uthta He Dil Lafzon Me Dohrayi Nahi Jati / दासताने कर्बला / Dastane Karbala / داستانِ کربلا तड़प उठता है दिल लफ्जो़ं में दोहराई नहीं जाती / تڑپ اٹھتا ہے دل لفظوں میں دوہرایئ نہیں جاتی

            दासताने कर्बला             


तडप उठता है दिल लफ्जो़ं में दोहराई नहीं जाती
ज़बाँ पर दासताने कर्बला लाई नही जाती

हुसैन इबने अली के ग़म में हो दुनिया से बेगाना
हजूमे खल्क़ में भी मेरी तनहाई नही जाती

उदासी छा रही है रूह पर शामें ग़रीबाँ की
तबीअत है कि बहलाने से बहलाई नही जाती

कहा अब्बास ने अफ्सोस बाजू़ कट गये मेरे
सकीना तक ये मश्के आब ले जाई नहीं जाती

जतन हर दोर में क्या क्या न अहले शर ने कर देखे
मगर ज़हरा के प्यारों की पजी़राई नहीं जाती

दलील इस्से हो क्या बड़कर शहीदों की तहारत पर
कि मय्यत दफन की जाती है नहलाई नही जाती

तमाचे मारलो खीमें जलालो कै़द में रखलो
अली के गुल रूखों से बूए ज़हराई नहीं जाती

कहा शबीर ने अब्बास तुम मुझको सहारा दो
कि तनहा लाशे अकबर मुझसे दफनाई नही जाती

खसीअत को पाना है तो टक्कर ले यजी़दों से
ये वोह मन्जिल है जो लफ्जों में  समझाई नहीं जाती

वो जिन चहरों को जी़नत गज़व ए खाके नजफ बखशे
दमें आखिर भी उन चहरों की जे़बाई नहीं जाती

सुना है कर्बला की खाक है अकसीर से बड़कर
ये मिट्टी आँख में लेने से बीनाई नहीं जाती

कोई भी दौर हो तू ही इमामे गम ठहरता है
गमें शब्बीर तेरी शान एकताई नही जाती

नसीर आखिर अदावत के भी कुछ आदाब होते हैं

किसी बीमार को ज़न्जीर पहनाई नही जाती


              داستانِ کربلا               


تڑپ اٹھتاہے دل لفظوں میں دوہرایئ نہیں جاتی
زباں پر داستانِ کربلا لائی نہیں جاتی

حسین ابنِ علی کے غم میں ہو دنیا سے بیگانہ
ہجومِ خلق میں بھی میری تنہائی نہیں جاتی

اداسی چھارہی ہےروح پرشامِ غریباں کی
طبیعت ہے کہ بہلانے سے بہلائی نہیں جاتی

کہا عباس نے افسوس بازو کٹ گئے میرے
سکینہ تک یہ مشکِ آب لے جائی نہیں جاتی

جتن ہردور میں کیا کیا نہ اہلِ شر نے کر دیکھے
مگر زہرا کے پیاروں کی پذیرائی نہیں جاتی

دلیل اس سےہوکیابڑھکرشہیدوں کی طہارت پر
کہ میّت دفن کی جاتی ہے نہلائی نہیں جاتی

طمانچےمارلوخیمے جلالو قید میں رکھلو
علی کے گل رخوں سے بوئے زہرائی نہیں جاتی

کہا شبّیر نے عبّاس تم مجھکو سہارا دو
کہ تنہا لاشِ اکبر مجھ سے دفنائی نہیں جاتی

خسیئیت کو پانا ہو تو ٹکّر لے یزیدوں سے
یہ وہ منزل ہےجولفظوں میں سمجھائی نہیں جاتی

وہ جن چہروں کوزینت غازۂ خاکِ نجف بخشے
دمِ آخر بھی ان چہروں کی زیبائی نہیں جاتی

سنا ہے کربلا کی خاک ہے اکسیر سے بڑھ کر
یہ مٹّی آنکھ میں لینے سے بینائی نہیں جاتی

کوئی بھی دَور ہو تو ہی امامِ غم ٹھہرتا ہے
غمِ شبّیر تیری شانِ ایکتائی نہیں جاتی

نصیر آخر عداوت کے بھی کچھ آداب ہوتے ہیں
کسی بیمار کو زنجیر پہنائی نہیں جاتی

                         مکمل


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