Naat Lyirics / बारिश की नात / Barish Ki Naat / بارش کی نعت हैं जुर्म बे हिसाब तो बारिश कहाँ से हो

             बारिश की नात         


हैं जुर्म बे हिसाब तो बारिश कहाँ से हो

कुछ है न इजतिनाब तो बारिश कहाँ से हो


खोफे नबी न खोफे खुदा दिल में है कहीं

आमाल हैं खराब तो बारिश कहाँ से हो


दिन भर ये आफताब चमकता है रात में

दिखते नहीं सहाब तो बारिश कहाँ से हो


साजा़र में हो या कि घर में या शाहे राह पर

औरत है बे हिजाब तो बारिश कहाँ से हो


छोटे बडे़ जवान मुलव्विस हैं सबके सब

पीते पीं जब शराब तो बारिश कहाँ से हो


टकराती है न बाबे इजाबत से ही दुआ

लगता ये है अजा़ब तो बारिश कहाँ से हो


महलों में है पडा़ मगर पड़ता कोई नहीं

कु़र्आन की किताब तो बारिश कहाँ से हो


तोफीक़ तोबा फिरभी नही हम से होती है

हर दम खिला है बाब तो बारिश कहाँ से हो


सरदार को़म फासिको फाजिर को नूर हम

करते है इन्तखाब तो बारिश कहाँ से हो


              بارش کی نعت            




                           مکمل


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