मस्जिद और मज़ार में फर्क

            मस्जिद और मज़ार में फर्क। 


मस्जिद और मज़ार के मामले मे फ़र्क़ देखिये !

लोग मस्जिद मे बुलाने पर भी कम जाते हैं

और मज़ार पर बिन बुलाये अनलिमिट लोग जाते हैं।

मस्जिद मे चंदा मांगने पर दिया जाता है और मज़ार पर बिन मांगे लाखों के हिसाब से रुपए, चाँदी, सोना, उपहार दिया जाता है।

मस्जिद के इमाम और मोअज़्ज़िन की तनख़्वाह 5 से 10 हज़ार के बीच होती है,

जबकि मुज़ावुर की कमाई लाखों के हिसाब से होती है।

मस्जिद के इमाम और मोअज्जीन के बच्चे बड़ी मुश्किल से अपनी जाएज़ ज़रूरियात पूरी कर पाते हैं,

जबकि मुज़ावुर के बच्चे जिंदगी के हर ऐश करते हैं। बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं।

इमाम साहब के घर सादा से होते हैं।

वहीं मुज़ावर बड़े आलीशान महलों और घरों और एसी रूम में रहते हैं।

मस्जिद के इमाम साहब का जितना एहतराम होना चाहिये उतना भी नहीं होता, जबकि मुजावुर जी का एहतराम हद से ज़्यादा: होता है।

ज़्यादा गर्मी, सर्दी, बरसात का एहसास नमाज़ियों को तो होता है और अक्सर तादाद कम हो जाती है,

जबकि मज़ारों पर जाने वालों को मौसम का कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, ज़ाएरीन जाते ही हैं।

मस्जिद की सफ़ें ख़ाली रह जाती हैं। वहीं मज़ारों पर धक्का मुक्की भी सहन करनी पड़ती है।

समझ नहीं आता के हिसाब किताब नमाज़ का होगा या मज़ार पर हाज़िरी और चढ़ावे का।

हय्या अलस्सलाह हय्या अलल् फ़लाह का बुलावा मस्जिद के लिए है या के मज़ार के लिये.? 

सोचने वाली बात है।

हमारे नबी ने फरमाया कि सच कड़वा होता है !!


तनक़ीद नहीं है !

दिल पर हाथ रख कर सोचिए 

साहिब ए मज़ार ने भी ज़िंदगी भर नमाज़ का और नेक अम करने का ही दर्स दिया था

लेकिन हमने साहिबे मज़ार के बताए हुये तरीक़े को छोड़ कर दूसरा तरीका अख्तियार कर लिया है

अगर हम मेले और ठेलों के बजाए साहिबे मजा़र के तोर तरीक़े को अपना लें तो हमारी ज़िंदगी खुशहाल हो जाएगी 

अगर हम सही मानो में अल्लाह तआला और उस्के रसूल ﷺ के फरमान के ऊपर अमल करें तो हम दुनिया में भी कामियाब होंगे और आखिरत में भी कामियाब होंगे इन्शा अल्लाह

अल्लाह पाक हम सब को अमल करने की तोफीक अता फरमाए। आमीन सुम्मा आमीन। 

     आपकी दुआओं का मुन्तज़िर मो० उस्मान रज़ा खाँन क़ादरी

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