नात इन हिन्दी
वो शहरे मोहब्बत जहाँ मुस्तफा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है
वो सोने से कंकर वो चांदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को जी चाहता है
जिहखदे मोहब्बत की आ़आज़ गूंजी कहा हंज़ला ने ये दुलहन से अपनी
इजाज़त अगर दो तो जामे शहादत लबों से लगाने को जी चाहता है
जो पूंछा नबी ने कि कुछ घर भी छोडा़ तो सिद्दीक़ अकबर के होंटो पे आया
वहाँ मालो दौलत की क्या है ह़की़क़त जहाँ जां लुटाने को जी चाहता है
वो नंन्हा सा असग़र वो एडी़ रगड़ कर यही कह रहा है वो खैमें में रोकर
ए बाबा में पानी का प्यासा नहीं हूँ मुझे सर कटाने को जी चाहता है
सितारों से ये चाँद कहता है हर दम तुम्हे क्या बताऐं वो टुकडे़ का आलम
इशारे में आका़ के इतना मजा़ था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है
जो देखा है रूए जमाले रिसालत तो ताहिर उमर मुस्तफा से ये बोले
बडी़ आपसे दुशमनी थी मगर अब गु़लामी में आने को जी चाहता है
نعت ان اردو
وہ شہر محبت جہاں مصطفیٰ ہیں وہیں گھر بنانے کو جی چاہتا ہے
وہ سونے سے کنکر وہ چاندی سی مٹی نظر میں بسانے کو جی چاہتا ہے
جہاد محبت کی آواز گونجی کہا حنظلہ نے یہ دلہن سے اپنی
اجازت اگر دو تو جامِ شہادت لبوں سے لگانے کو جی چاہتا ہے
جو پونچھا نبی نے کہ کچھ گھر بھی چھوڑا تو صدیق اکبر کے ہونٹو پہ آیا
وہاں مال و دولت کی کیا ہے حقیقت جہاں جاں لٹانے کو جی چاہتا ہے
وہ ننہا سا اصغر وہ ایڑی رگڑ کر یہی کہ رہا ہے وہ خیمے میں روکر
اے بابا میں پانی کا پیاسا نہیں ہوں میرا سر کٹانے کو جی چاہتا ہے
ستاروں سے یہ چاند کہتا ہے ہردم تمہیں کیا بتاؤں وہ ٹکڑوں کا عالم
اشارے میں آقاچکے اتنا مزا تھا کہ پھر ٹوٹ جانے کو جی چاہتا ہے
جو دیکھا ہے روئے جمالِ رسالت تو طاہر عمر مصطفیٰ سے یہ بولے
بڑی آپ سے دشمنی تھی مگر اب غلامی میں آنے کو جی چاہتا ہے
مکمل
ताहिर रजा़ राम पुरी की नात
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